मिल्टन फ्रीडमेन
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
[जन्म 1912]
मिल्टन फ्रीडमेन 20वीं सदी के प्रमुख अर्थशास्त्री हैं जो मुक्त बाजार की पैरवी करते हैं. उनका जन्म 1912 में एक यहुदी परिवार में न्यूयार्क शहर में हुआ. रटगर्स यूनिवर्सिटी से 20 साल की उम्र में बी.ए. की डिग्री लेने के बाद 1933 मे शिकागो यूनिवर्सिटी गए जहां उन्होंने एम.ए. की डिग्री हासिल की. उन्होंने अपनी पी.एचडी. की उपाधि 1946 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से हासिल की. अपनी विलक्षण उपलब्धियों के लिए उन्हें 1951 में जॉन बेट्स क्लार्क मैडल से सम्मानित किया गया. यह सम्मान 40 वर्ष से कम उम्र के अर्थशास्त्रियों के लिए घोषित था. 1976 में फ्रीडमेन को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
यह पुरस्कार उन्हें खपत विश्लेषण, मौद्रिक इतिहास और सिद्धांत तथा स्थिरीकरण नीति की जटिलता प्रदर्शित करने के लिए दिया गया. इससे पहले उन्होंने राष्ट्रपति निक्सन के सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं दीं और 1966 में अमेरिकी आर्थिक संगठन (American Economic Association) के अध्यक्ष रहे. 1977 में शिकोगो यूनिवर्सिटी से रिटायर होने के बाद से फ्रीडमेन स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के हूवर इंस्टिट्यूट के सीनियर रिसर्च फैलो हैं. फ्रीडमेन ने 1945 में सिमॉन कुजनेट्स के साथ “स्वतंत्र पेशेवर कार्य से आय” (Income From Independent Professional Practice) के जरिए अपनी पहचान बनाई. इसमें उन्होंने तर्क दिया कि राज्य की न्याय व्यवस्था ने डॉक्टरी पेशे में प्रवेश को सीमित कर दिया था जिसके कारण डॉक्टर ऊंची फीस लेते थे पर अब प्रतियोगिता खुली होने की वजह से ऐसा नहीं होगा.
1957 की उनकी महत्वपूर्ण रचना “ए थ्योरी ऑफ दि कंजम्प्शन फंक्शन” कीन्सीयन विचार के बारे में है. इसके मुताबिक व्यक्तिगत और पारिवारिक लोग अपन खर्चे उपभोग के अनुसार ढाल लेते हैं जो उनकी आय को प्रभावित करता है. जबकि फ्रीडमेन ने बताया कि लोगों का वार्षिक उपभोग ही उनकी जीवन भर की अनुमानित आमदनी का कार्य है.
केपिटलिज्म ऐंड फ्रीडम में फ्रीडमेन ने बाज़ार की अर्थव्यवस्था की स्टडी को गुमनामी से निकाल करे जमीनी हकीकतों के साथ पेश किया. अन्य चीजों के साथ-साथ उनका तर्क स्वेच्छा से बने सैनिक, मुक्त रूप से चलायमान विनिमय दर, डॉक्टरों के लिए लाइसेंस प्रथा को खत्म करना, नकारात्मक आयकर और शिक्षा वाउचर प्रणाली के लिए भी था. (फ्रीडमेन मिलीट्री ड्राफ्ट के कट्टर विरोधी थे. एक बार उन्होंने कहा था कि सिर्फ इस ड्राफ्ट के उन्मूलन के लिए उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया था।) हालांकि उनकी पुस्तक की ज्यादा बिक्री नहीं हुई पर काफी युवाओं जिन्होंने यह पुस्तक पढ़ी अर्थशास्त्र पढ़ने के लिए प्रेरित हुए। उनकी पुस्तक “फ्री टु चूज़” (Free to Choose), जो उन्होंने अपनी पत्नी रोज़ फ्रीडमेन के साथ मिल कर लिखी, से उनके विचार पूरी दुनिया में फैले जो 1980 की बेस्टसेलर नॉन फिक्शन पुस्तक थी. यह पुस्तक सरकारी प्रसारण व्यवस्था (Public Broadcasting System) पर आधारित एक टीवी श्रृंखला की सहायता के लिए लिखी गई थी. इस किताब मदद से मिल्टन फ्रीडमेन का नाम घर-घर जा पहुंचा.
हालांकि उनका काफी काम खास तौर पर मूल्य सिद्धांत (Price Theory) पर ही हुआ है. यह थ्योरी बताती है कि व्यक्तिगत बाजारों में मूल्य कैसे निर्धारित होते हैं, लेकिन फ्रीडमेन मौद्रिकरण के लिए जाने जाते हैं. कीन्स और उस वक्त के बहुत से विद्वत्तापूर्ण संस्थानों को चुनौती देते हुए फ्रीडमेन ने मुद्रा के मात्रा संबंधी सिद्धांत को प्रमाणित किया. 1956 में प्रकाशित Studies in the Quantity Theory of Money में फ्रीडमेन ने बताया कि लंबी अवधि में बढ़ा हुआ मौद्रिक विकास मूल्यों को बढ़ाता है पर उत्पादन पर इसका थोड़ा असर होता है या फिर यह बेअसर रहता है. कम अवधि में उनका तर्क था मुद्रा आपूर्ति में बढ़त की वजह से रोजगार और उत्पादन बढ़ते हैं और मुद्रा आपूर्ति में गिरावट से विपरीत असर होता है.
रोजगार और वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Real GNP) में छोटी अवधि के उतार-चढ़ाव और मुद्रास्फीति की समस्या का फ्रीडमेन का उपाय था- मुद्रा आपूर्ति नियम। उनका तर्क था कि जिस दर से वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद बढ़ता है उसी दर से फेडरल रिजर्व बोर्ड ने मुद्रा आपूर्ति बढ़ाई तो मुद्रास्फीति गायब हो जाएगी. 1963 में फ्रीडमेन का मौद्रिकरण नई एक नए धरातल पर सामने आ गया जब उन्होंने एना श्वार्ट्ज (Anna Schwarts) के साथ मिल कर “अमेरिका का मौद्रिक इतिहास” (Monetary History of the United States 1867-1960) लिखी. उसमें उन्होंने दावा किया कि फेडरल रिजर्व द्वारा अनसोची मौद्रिक नीतियों का ही नतीजा थी महामंदी (Great Depression). लेखकों द्वारा अप्रकाशित पांडुलिपी विचारार्थ प्रस्तुत करने पर फेडरल रिजर्व बोर्ड ने आंतरिक तौर पर लंबा आलोचनात्मक विश्लेषण प्रतिक्रिया के रूप में दिया. उनके आंदोलन का यह असर हुआ कि फेडरल गवर्नर्स ने अपनी बोर्ड मीटिंग में होने वाली चर्चाओं की जानकारी को विज्ञापित करने की नीति को समाप्त कर दिया. इसके साथ एक आधिकारिक घोषणा यह भी की गई कि एल्मस आर. विकर (Elmus R Wicker) द्वारा एक जवाबी इतिहास (काउंटर हिस्ट्री) लिखा जाए. यह घोषणा इस उम्मीद के साथ की गई थी, कि लोगों का मौद्रिक इतिहास (Monetary History) से ध्यान हटे.
हालांकि कई अर्थशास्त्री फ्रीडमेन के मौद्रिक विचारों से असहमत हैं लेकिन व्यवसाय पर उनका मजबूत प्रभाव रहे. उस प्रभाव से जो बदलाव आए हैं उनमें से एक है वह कीन्स समर्थक पॉल सेम्युल्सन की बेस्टसेलर “अर्थशास्त्र” (Economics) में मौद्रिक नीति में फेरबदल.
1948 के संस्करण में सेम्युल्सन ने खंडन करते हुए लिखा कि “कुछ अर्थशास्त्री” फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति को यह कह कर सम्मान देते हैं इसमें व्यापार चक्र को नियंत्रित करने के साथ ही अर्थव्यवस्था में सभी किस्म की बीमारियां दूर करने का माद्दा है. लेकिन 1967 में सेम्युल्सन ने कहा कि कुल खर्च पर मौद्रिक नीति ‘प्रभावशाली असर’ होता है. सेम्युल्सन की इस किताब का 1985 का संस्करण येल के. विलियम नॉर्डहास के साथ प्रकाशित किया कया. इसमें कहा गया कि “पैसा ही सबसे सशक्त और काम का औजार है जो समष्टि अर्थसास्त्र (Macro Economics) के नीति बनाने वालों (पॉलिसी मेकर्स) के पास है.” उसमें यह भी जोड़ा गया कि फेडरल रिजर्व ही नीति बनाने में सबसे “महत्वपूर्ण घटक” है.
पूरे साठ के दशक में कीन्सीयन और मुख्य धारा के अर्थशास्त्री यही मानते रहे कि सरकार बेरोजगारी और मुद्रास्फीति के बीच एक स्थिर तथा लंबी अवधि के विनिमय का सामना करती रही जोकि फिलिप्स कर्व कहलाता है. इस नजर से सरकार माल और सेवाओं की मांग बढ़ा कर स्थायी तौर पर बेरोजगारी घटा सकती है और ऊंची मूद्रास्फीति दर को स्वीकार करके भी यह हो सकता है. परंतु साठ के दशक के अंत में फ्रीडमेन और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एडमंड फेल्प्स ने इस नजरिए को चुनौती दी. फ्रीडमेन का तर्क था कि एक बार लोग ऊंची स्फीति दर को समझ लेंगे तो बेरोजगारी फिर आ जाएगी. उनका कहना था कि बेरोजगारी को स्थायी तौर पर कम रखने के लिए न सिर्फ ऊंची पर स्थायी रूप से गति पकड़ने वाली मुद्रास्फीति दर की जरूरत है.
सत्तर के दशक की मुद्रास्फीतिजनित मंदी (stagflation) और बढ़ती बेरोजगारी ने फ्रीडमेन फेल्प्स के नजरिए का सशक्त सबूत दे दिया और बहुत से अर्थशास्त्रियों पर प्रभाव डाला जिनमें कई कीन्सीयन भी थे. फिर से सेम्युल्सन के टैक्स्ट ने अर्थशास्त्रियों की सोच बदलने में स्थिति मापते हुए बैरोमीटर का काम किया. सेम्युल्सन की किताब के 1967 के संस्करण ने संकेत दे दिया कि मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच के ट्रेड-ऑफ (अदला-बदली या लेन-देन) का नीति निर्धारकों ने सामना किया. 1980 के संस्करण में कहा कि छोटी अवधि की बजाए लंबी अवधि में यह ट्रेड-ऑफ कम था. 1985 के संस्करण में कहा गया है कि कोई लंबी अवधि का ट्रेड-ऑफ नहीं है.
कीन्स के बाद से किसी और अर्थशास्त्री ने हमारी सोच और अर्थशास्त्र के उपयोग को उतना नहीं बदला है जितना की मिल्टन फ्रीडमेन ने. उनके विषयों की गुंजाइश और विचारों का महत्व और विस्तार न सिर्फ समकालीन आर्थिक विचारों की नींव का पत्थर है बल्कि पूरे के पूरे सुगढ़ ढांचे का निर्माण है.
मिल्टन फ्रीडमेन की कुछ प्रमुख कृतियां
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